What Is Repo Rate & Reverse Repo Rate In Hindi | रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट क्या है?

Rashmi Alone
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भारतीय अर्थव्यवस्था को समझने के लिए रेपो रेट (Repo Rate) और रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) जैसे शब्दों की जानकारी होना ज़रूरी है। यह दोनों ही रेट RBI (भारतीय रिज़र्व बैंक) द्वारा नियंत्रित किए जाते हैं और इनका सीधा असर आपके लोन की ब्याज दर, बचत पर मिलने वाला रिटर्न, और देश की आर्थिक गतिविधियों पर पड़ता है।

अगर आपने कभी सोचा है कि "महंगाई बढ़ने पर RBI रेपो रेट क्यों बढ़ा देता है?" या "बैंकों के पास पैसा कम या ज़्यादा कैसे होता है?", तो यह आर्टिकल आपके लिए ही है। इस पोस्ट में हम What is repo rate and Reverse repo rate in hindi, रेपो रेट क्या है, और रिवर्स रेपो रेट क्या है? रेपो रेट कैसे काम करता है? इनका अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है? इत्यादी की जानकारी जानेंगे।

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रेपो रेट क्या है? - What Is Repo Rate In Hindi

रेपो रेट (Repo Rate) वह दर है जिस पर भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) देश के वाणिज्यिक बैंकों (जैसे SBI, HDFC, ICICI) को अल्पकालिक लोन देता है। जब बैंकों को पैसों की कमी होती है, तो वे RBI से कर्ज़ लेते हैं। इस कर्ज़ के बदले में बैंक RBI के पास सरकारी बॉन्ड या अन्य सुरक्षित संपत्तियां (जैसे G-Secs) गिरवी रखते हैं।

रेपो रेट का पूरा नाम "Repurchase Agreement Rate" है, क्योंकि यहां बैंक एक समझौते के तहत संपत्तियों को "Repurchase" (वापस खरीद) करने का वादा करते हैं।

रेपो रेट की परिभाषा (Repo Rate Definition)

रेपो रेट, RBI द्वारा वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक ऋण देने के लिए निर्धारित की गई ब्याज दर है। यह दर Inflation (मुद्रास्फीति, महंगाई) और अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह को नियंत्रित करने का एक प्रमुख टूल है।


रिवर्स रेपो रेट क्या है? - What Is Reverse Repo Rate

रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) रेपो रेट के ठीक उलट है। इसमें RBI, वाणिज्यिक बैंकों से पैसा उधार लेता है। जब बैंकों के पास अतिरिक्त नकदी होती है, तो वे इसे RBI के पास जमा कर देते हैं। इसके बदले में RBI उन्हें रिवर्स रेपो रेट के अनुसार ब्याज देता है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य बाजार में अतिरिक्त पैसों को सोखना (Absorb) और मुद्रास्फीति को कंट्रोल करना होता है।

रिवर्स रेपो रेट की परिभाषा - Reverse Repo Rate Definition

रिवर्स रेपो रेट, RBI द्वारा वाणिज्यिक बैंकों से अतिरिक्त नकदी जमा कराने के लिए दी जाने वाली ब्याज दर है। यह दर आमतौर पर रेपो रेट से कम होती है।


रेपो रेट कैसे काम करता है? How Does Repo Rate Work

रेपो रेट का मुख्य काम बैंकों और अर्थव्यवस्था के बीच पैसों के प्रवाह को रेगुलेट करना है। आइए इसे एक उदाहरण से समझते हैं:

मान लीजिए, SBI बैंक को अपने ग्राहकों को लोन देने के लिए अतिरिक्त 500 करोड़ रुपये चाहिए। लेकिन उसके पास यह रकम नहीं है। ऐसे में SBI, RBI के पास जाकर सरकारी बॉन्ड गिरवी रखकर 500 करोड़ रुपये उधार लेगा। अगर रेपो रेट 6.5% है, तो SBI को इस लोन पर 6.5% सालाना ब्याज देना होगा। RBI यह दर बढ़ा या घटा सकता है, जिससे बैंकों के लोन लेने की लागत प्रभावित होती है।

रेपो लेनदेन के घटक (Components of a Repo Transaction)

रेपो लेनदेन में निम्नलिखित चीजें शामिल होती हैं:

  1. उधारकर्ता (Borrower): वाणिज्यिक बैंक (जैसे SBI, PNB) 
  2. उधारदाता (Lender): RBI
  3. कोलैटरल (Collateral): सरकारी बॉन्ड या सिक्योरिटीज।
  4. ब्याज दर (Interest Rate): रेपो रेट
  5. समय अवधि (Tenure): आमतौर पर 1 दिन से लेकर 14 दिन तक।


रेपो रेट का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव (Effect Of Repo Rate On Economy)

रेपो रेट में बदलाव का असर सीधे तौर पर बैंकों, व्यापारियों और आम लोगों पर पड़ता है:

1. लोन की ब्याज दरें:

  • अगर RBI रेपो रेट बढ़ाता है, तो बैंकों के लिए उधार लेना महंगा हो जाता है। इससे बैंक होम लोन, कार लोन और व्यवसायिक ऋणों की ब्याज दरें बढ़ा देते हैं।  
  • रेपो रेट घटने पर बैंक सस्ते दरों पर लोन देते हैं, जिससे उपभोक्ता खर्च और निवेश बढ़ता है।

2. मुद्रास्फीति नियंत्रण:

  • महंगाई बढ़ने पर RBI रेपो रेट बढ़ाकर पैसों की आपूर्ति कम कर देता है। इससे लोन महंगे होते हैं और लोगों की खरीदारी कम होती है।
  • मुद्रास्फीति कम होने पर रेपो रेट घटाया जाता है ताकि अर्थव्यवस्था में नकदी बढ़े।

3. निवेश और बचत:

उच्च रेपो रेट की स्थिति में लोग बचत पर अधिक रिटर्न पाते हैं, जबकि कम रेपो रेट निवेश को प्रोत्साहित करता है।


रिवर्स रेपो रेट का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव (Effect of Reverse Repo Rate on Economy)

रिवर्स रेपो रेट का प्रभाव रेपो रेट के विपरीत होता है:

1. बैंकों की नकदी प्रबंधन:

  • जब RBI रिवर्स रेपो रेट बढ़ाता है, तो बैंक अपना अतिरिक्त पैसा RBI के पास जमा करना पसंद करते हैं। इससे बाजार में नकदी की कमी हो जाती है।
  • रिवर्स रेपो रेट कम होने पर बैंक बाजार में अधिक लोन देते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में पैसों की आवक बढ़ती है।

2. लिक्विडिटी कंट्रोल:

  • RBI रिवर्स रेपो रेट का उपयोग करके बाजार में अतिरिक्त लिक्विडिटी (नकदी) को सोखता है। यह महंगाई को कंट्रोल करने में मदद करता है।

3. बचत और डिपॉजिट रेट:

  • उच्च रिवर्स रेपो रेट बैंकों को ग्राहकों की FD (फिक्स्ड डिपॉजिट) पर अधिक ब्याज देने के लिए प्रेरित करता है।


रिवर्स रेपो रेट और रेपो रेट में अंतर

Difference between reverse repo rate and repo rate in hindi: रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट दोनों RBI के मौद्रिक नीति के महत्वपूर्ण टूल्स हैं, लेकिन इनके उद्देश्य और कार्यप्रणाली में बुनियादी अंतर होते हैं। आइए इन्हें सरल पॉइंट्स में समझें:

परिभाषा:

  • रेपो रेट: यह वह दर है जिस पर RBI वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक लोन देता है।
  • रिवर्स रेपो रेट: यह वह दर है जिस पर RBI बैंकों से अतिरिक्त नकदी जमा करता है।

उद्देश्य:

  • रेपो रेट बाजार में नकदी की कमी को पूरा करने और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए उपयोग किया जाता है।
  • रिवर्स रेपो रेट बाजार से अतिरिक्त पैसा वापस लेकर मुद्रास्फीति को नियंत्रित करता है।

अर्थव्यवस्था पर असर:

  • रेपो रेट बढ़ने से लोन महंगे होते हैं, जिससे खपत और निवेश घटता है।
  • रिवर्स रेपो रेट बढ़ने पर बैंक RBI के पास ज्यादा पैसा जमा करते हैं, जिससे बाजार में नकदी कम हो जाती है।

बैंकों की भूमिका:

  • रेपो रेट में बैंक RBI से उधार लेते हैं।
  • रिवर्स रेपो रेट में बैंक RBI के पास पैसा जमा करते हैं।

दरों का समीकरण:

  • रिवर्स रेपो रेट हमेशा रेपो रेट से कम होती है। उदाहरण के लिए, अगर रेपो रेट 6.5% है, तो रिवर्स रेपो रेट 3.35% हो सकती है।

ट्रांजैक्शन की दिशा:

  • रेपो रेट: RBI → बैंक (पैसा बाहर जाता है)।
  • रिवर्स रेपो रेट: बैंक → RBI (पैसा वापस आता है)।

सीधे शब्दों में, रेपो रेट RBI का बैंकों को "पैसा देने" का टूल है, जबकि रिवर्स रेपो रेट "पैसा वापस लेने" का। दोनों दरें अर्थव्यवस्था में पैसों के प्रवाह को बैलेंस करने का काम करती हैं।


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FAQs: Repo Rate & Reverse Repo Rate In Hindi

1. रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में क्या अंतर है?

रेपो रेट: बैंकों द्वारा RBI से लोन लेने की दर है। रिवर्स रेपो रेट: बैंकों द्वारा RBI के पास पैसा जमा करने पर मिलने वाली दर है।

2. इन दरों को निर्धारित कौन करता है?

RBI की मौद्रिक नीति समिति (MPC) हर 2 महीने में एक बार इन दरों की समीक्षा करती है।

3. रेपो रेट बढ़ने से आम आदमी पर क्या असर पड़ता है?

लोन (जैसे होम लोन, कार लोन) महंगे हो जाते हैं, जबकि बचत पर ब्याज दर बढ़ सकती है।

4. वर्तमान में भारत का रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट क्या है?

नोट: यह दरें समय-समय पर बदलती रहती हैं। पाठकों को RBI की ऑफिशियल वेबसाइट चेक करने की सलाह दें।


Conclusion:

रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट, RBI के सबसे शक्तिशाली मौद्रिक उपकरण हैं जो अर्थव्यवस्था की गति को संतुलित रखते हैं। यह दरें न केवल बैंकिंग सेक्टर, बल्कि हर उस व्यक्ति को प्रभावित करती हैं जो लोन लेता है, बचत करता है, या निवेश करता है। अगर आप समझ गए हैं कि ये दरें कैसे काम करती हैं, तो आप RBI की मौद्रिक नीतियों और अखबारों में छपी आर्थिक खबरों को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे। तो अगली बार जब RBI रेपो रेट में बदलाव की घोषणा करे, तो आप जान जाएंगे कि यह आपकी जेब पर कैसे असर डालेगा।

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