फ्यूचर्स ट्रेडिंग क्या है? | What Is Futures Trading In Hindi With Example

Rashmi Alone
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फ्यूचर्स ट्रेडिंग (Futures Trading) यह एक ऐसा समझौता है जहां ट्रेडर आज ही भविष्य की एक निश्चित तारीख पर, एक तय कीमत पर किसी वस्तु या फाइनेंशियल एसेट खरीदने-बेचने का वादा करते हैं। यह कॉन्सेप्ट सोना, चांदी, तेल से लेकर शेयरों और करेंसी तक पर लागू होता है।

कल्पना कीजिए एक किसान है जो अगले 3 महीने बाद अपनी गेहूं की फसल बेचेगा। लेकिन उसे डर है कि कहीं कीमतें गिर न जाएं। दूसरी तरफ, एक बड़ा बिस्कुट कंपनी है जिसे अगले 3 महीने में बड़ी मात्रा में गेहूं चाहिए। उसे डर है कि कहीं कीमतें आसमान न छू लें, यहाँ फ्यूचर्स ट्रेडिंग इन दोनों की समस्या का जादुई हल है।

तो दोस्तों निचे हमने What is futures trading in hindi, फ्यूचर्स ट्रेडिंग क्या है, Advantages और Disadvantages, फ्यूचर्स ट्रेडिंग कैसे काम करता है, How to start future trading, Futures trading example, इत्यादी की जानकारी दी है।

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फ्यूचर्स ट्रेडिंग क्या है? What Is Futures Trading In Hindi

फ्यूचर्स ट्रेडिंग, जिसे हिंदी में "भविष्य कारोबार" या "वायदा व्यापार" भी कहा जाता है, यह डेरिवेटिव्स मार्केट का एक अहम हिस्सा है। इसमें दो पक्ष (खरीददार और विक्रेता) आज ही एक कानूनी समझौता (कॉन्ट्रैक्ट) करते हैं कि वे भविष्य की एक पूर्व निर्धारित तारीख (एक्सपायरी डेट) पर, एक पूर्व निर्धारित कीमत (फ्यूचर्स प्राइस) पर, एक निश्चित मात्रा और गुणवत्ता की किसी वस्तु या फाइनेंशियल एसेट (संपत्ति) का लेन-देन करेंगे।

फ्यूचर्स ट्रेडिंग के मुख्य तत्व:

  • Underlying Asset: जिस चीज पर कॉन्ट्रैक्ट आधारित है - जैसे सोना, कच्चा तेल, NIFTY 50 इंडेक्स, शेयर, USD/INR जोड़ी इत्यादी।
  • Contract Size: एक कॉन्ट्रैक्ट में कितनी मात्रा या कितने शेयर्स खरीदे/बेचे जाते हैं। (जैसे गोल्ड फ्यूचर्स का 1 कॉन्ट्रैक्ट = 1 किलोग्राम सोना)।
  • Expiry Date: वह निश्चित तारीख जब कॉन्ट्रैक्ट का निपटारा (सेटलमेंट) होना होता है। भारत में ज्यादातर इक्विटी फ्यूचर्स महीने के आखिरी गुरुवार को एक्सपायर होते हैं।
  • Futures Price: वह कीमत जिस पर भविष्य में लेन-देन तय होता है।
  • Margin: कॉन्ट्रैक्ट की कुल वैल्यू का एक छोटा सा हिस्सा जो ट्रेडर को अपने ब्रोकर के पास सिक्योरिटी के तौर पर जमा करना पड़ता है। यह लीवरेज का आधार है।

फ्यूचर्स ट्रेडिंग का मूल उद्देश्य?

शुरुआत में तो इसका मकसद जोखिम प्रबंधन (Hedging) था। जैसे हमारे किसान और बिस्कुट कंपनी वाला उदाहरण। उत्पादक और उपभोक्ता कीमतों के उतार-चढ़ाव के जोखिम से बच सकते हैं। लेकिन आजकल, फ्यूचर्स मार्केट में सट्टेबाजी (Speculation) और मूल्य खोज (Price Discovery) भी बड़े उद्देश्य बन गए हैं। सट्टेबाज कीमतों में होने वाले बदलाव से मुनाफा कमाने के लिए ट्रेड करते हैं।


फ्यूचर्स ट्रेडिंग कैसे काम करती है? How Futures Trading Works In Hindi

फ्यूचर्स ट्रेडिंग स्टॉक एक्सचेंजों (जैसे NSE या BSE) पर होती है। यहां कुछ जरूरी बातें समझ लेना जरूरी है:

1.  दो पोजीशन:

  • Long Position - खरीदना: इसका मतलब है कि आपने एक फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट खरीदा है। आप वादा कर रहे हैं कि एक्सपायरी डेट पर आप अंतर्निहित परिसंपत्ति को तय कीमत पर खरीदेंगे। आपको उम्मीद है कि भविष्य में कीमत बढ़ेगी।
  • Short Position - बेचना: इसका मतलब है कि आपने एक फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट बेचा है। आप वादा कर रहे हैं कि एक्सपायरी डेट पर आप अंतर्निहित परिसंपत्ति को तय कीमत पर बेचेंगे। आपको उम्मीद है कि भविष्य में कीमत गिरेगी।

2. मार्जिन और लीवरेज:

  • आपको पूरी कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू नहीं लगानी पड़ती। बस एक छोटा सा हिस्सा (मार्जिन) जमा करना होता है।
  • उदाहरण: मान लीजिए 1 किलो सोने का फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट 70 लाख रुपये का है। एक्सचेंज सिर्फ 5% यानी 3.5 लाख रुपये मार्जिन मांग सकता है।
  • लीवरेज क्या है? 3.5 लाख लगाकर 70 लाख के एसेट पर कंट्रोल पाना ही लीवरेज (लीवर का असर) है। यहां आपका पैसा 20 गुना (70L / 3.5L) तक काम कर रहा है! थोड़े से पैसे से बड़ा मूवमेंट कैप्चर कर सकते हैं।
  • जोखिम: लीवरेज दोनों तरफ काम करता है। मुनाफा तेजी से बढ़ सकता है, लेकिन नुकसान भी उसी रफ्तार से हो सकता है और आपके द्वारा जमा किए गए मार्जिन से भी ज्यादा हो सकता है। इसे मार्जिन कॉल का खतरा होता है।

3. मार्क टू मार्केट (MTM):

  • हर रोज, एक्सचेंज फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट की कीमत को उस दिन के क्लोजिंग मार्केट प्राइस के हिसाब से अपडेट करता है।
  • अगर आपकी पोजीशन में उस दिन नुकसान हो रहा है (कीमत आपके खिलाफ चल रही है), तो यह नुकसान आपके मार्जिन अकाउंट से काट लिया जाता है।
  • अगर मार्जिन अकाउंट में पैसा एक निश्चित स्तर (मेंटेनेंस मार्जिन) से नीचे चला जाता है, तो ब्रोकर आपको मार्जिन कॉल करेगा - यानी अतिरिक्त फंड जमा करने को कहेगा। अगर आप नहीं कर पाते, तो ब्रोकर आपकी पोजीशन को फोर्स (जबरन) बंद कर सकता है।

4. निपटान (Settlement):

  • Physical Settlement: एक्सपायरी डेट पर, वास्तविक अंतर्निहित परिसंपत्ति (जैसे शेयर या कमोडिटी) का डिलीवरी के साथ हस्तांतरण होता है। (इक्विटी फ्यूचर्स में यह कम ही होता है)।
  • Cash Settlement: सबसे आम तरीका। एक्सपायरी पर अंतर्निहित परिसंपत्ति के स्पॉट प्राइस और फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट की तय कीमत के बीच का अंतर नकदी में चुकाया जाता है। मुनाफा या नुकसान बस आपके अकाउंट में जमा या निकाल लिया जाता है। कोई वास्तविक डिलीवरी नहीं होती। (ज्यादातर इंडेक्स फ्यूचर्स और कुछ कमोडिटी फ्यूचर्स इसी तरह सेटल होते हैं)।
  • Rollover: अगर ट्रेडर एक्सपायरी के बाद भी अपनी पोजीशन को जारी रखना चाहता है, तो वह एक्सपायर हो रहे कॉन्ट्रैक्ट को बेचकर/खरीदकर और अगले महीने के कॉन्ट्रैक्ट को खरीदकर/बेचकर अपनी पोजीशन को "रोलओवर" कर सकता है।


फ्यूचर्स के प्रकार - Types Of Futures In Hindi

मुख्य रूप से फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स को उनकी अंतर्निहित परिसंपत्ति (अंडरलाइंग एसेट) के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है:

1. कमोडिटी फ्यूचर्स (Commodity Futures):

  • कृषि उत्पाद (Agri): गेहूं, चावल, चना, सोयाबीन, रुई, कॉफी, काजू, इलायची, गारमेंट कॉटन आदि। (MCX और NCDEX पर ट्रेड होते हैं)।
  • धातु (Metals): सोना, चांदी, प्लैटिनम, तांबा, जिंक, लेड, निकल आदि। (मुख्यतः MCX पर)।
  • ऊर्जा (Energy): क्रूड ऑयल, नेचुरल गैस, गैसोलीन आदि। (मुख्यतः MCX पर)।

2. वित्तीय फ्यूचर्स (Financial Futures):

  • इक्विटी फ्यूचर्स (Stock Futures): किसी विशिष्ट कंपनी के शेयरों पर आधारित। (जैसे RELIANCE, TCS, HDFCBANK फ्यूचर्स - NSE/BSE पर)।
  • इंडेक्स फ्यूचर्स (Index Futures): किसी स्टॉक मार्केट इंडेक्स पर आधारित। (जैसे NIFTY 50 फ्यूचर्स, BANKNIFTY फ्यूचर्स - NSE पर; SENSEX फ्यूचर्स - BSE पर)। ये सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं।
  • करेंसी फ्यूचर्स (Currency Futures): विदेशी मुद्रा जोड़ियों पर आधारित। (जैसे USD/INR, EUR/INR, GBP/INR, JPY/INR फ्यूचर्स - NSE/BSE/MCX-SX पर)।
  • ब्याज दर फ्यूचर्स (Interest Rate Futures - IRF): ब्याज दरों या बॉन्ड्स पर आधारित। (जैसे 10-Year G-Sec फ्यूचर्स, 91-Day T-Bill फ्यूचर्स - NSE/BSE पर)।


फ्यूचर्स ट्रेडिंग कैसे शुरू करें? How to Start Futures Trading in Hindi

फ्यूचर्स ट्रेडिंग शुरू करना काफी सीधा है, लेकिन इसमें कूदने से पहले ज्ञान, अनुभव और तैयारी जरूरी है:

1. ज्ञान प्राप्त करें (Knowledge is Power):

  • बेसिक्स समझें: टर्मिनोलॉजी (मार्जिन, लीवरेज, MTM, एक्सपायरी), काम करने का तरीका, जोखिम।
  • टेक्निकल एनालिसिस (चार्ट पैटर्न, इंडिकेटर्स) और फंडामेंटल एनालिसिस सीखें।
  • ऑनलाइन कोर्सेज, किताबें, विश्वसनीय वेबसाइट्स, सेमिनार्स का सहारा लें।

2. एक विश्वसनीय डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट खोलें:

  • SEBI रजिस्टर्ड ब्रोकर चुनें (जैसे Zerodha, Upstox, Angel One, ICICI Direct, HDFC Securities आदि)।
  • डीमैट अकाउंट (शेयर्स रखने के लिए) और ट्रेडिंग अकाउंट (ट्रेडिंग के लिए) खुलवाएं। फ्यूचर्स ट्रेडिंग के लिए स्पष्ट रूप से अधिकार दें।

3. मार्जिन रकम जुटाएं:

  • फ्यूचर्स ट्रेडिंग के लिए आपके अकाउंट में पर्याप्त मार्जिन होना चाहिए। शुरुआत छोटे कॉन्ट्रैक्ट्स (जैसे मिनी या मिडी इंडेक्स फ्यूचर्स) से करें जिनकी मार्जिन कम होती है।

4. ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म से परिचित हों:

  • ब्रोकर का ट्रेडिंग सॉफ्टवेयर या मोबाइल ऐप (जैसे Zerodha का Kite, Upstox Pro, AngelOne) सीखें। ऑर्डर देने, चार्ट देखने, पोजीशन ट्रैक करने का तरीका जानें।

5. एक ट्रेडिंग योजना बनाएं और रिस्क मैनेज करें:

  • टार्गेट और स्टॉप लॉस: हर ट्रेड से पहले तय करें कि कितना मुनाफा कमाना है (टार्गेट) और कितना नुकसान सहने को तैयार हैं (स्टॉप लॉस)। स्टॉप लॉस का सख्ती से पालन करें।
  • पोजीशन साइजिंग: अपनी कुल पूंजी का एक छोटा हिस्सा (जैसे 1-2%) ही किसी एक ट्रेड पर रिस्क करें। एक साथ कई कॉन्ट्रैक्ट्स में न पड़ें।
  • लीवरेज का विवेकपूर्ण उपयोग: लीवरेज जादुई छड़ी नहीं है, यह दोधारी तलवार है। अति उत्साह में ज्यादा लीवरेज न लें।

6. पेपर ट्रेडिंग से शुरुआत करें:

  • असली पैसे लगाने से पहले, ब्रोकर के वर्चुअल/डेमो ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म पर प्रैक्टिस करें। यह रियल-टाइम मार्केट में बिना रिस्क के अनुभव देता है।

7. छोटे से शुरू करें और अनुशासित रहें:

  • शुरुआत छोटी पूंजी और छोटे कॉन्ट्रैक्ट्स से करें। धैर्य रखें। भावनाओं (लालच, डर) को ट्रेडिंग पर हावी न होने दें।


Futures Trading Example - फ्यूचर्स ट्रेडिंग उदाहरण

मान लीजिए आज 1 अक्टूबर है। NIFTY 50 इंडेक्स स्पॉट प्राइस 19,500 पर है। आपका विश्लेषण बताता है कि अगले एक महीने में निफ्टी बढ़ सकता है।

1. आप क्या करते हैं? (लॉन्ग पोजीशन - खरीदना):

आप NIFTY के नवंबर महीने के एक्सपायरी वाले फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट (मान लीजिए NIFTY 26 NOV FUT) को खरीदने का फैसला करते हैं।

  • मान लीजिए इसकी करंट कीमत (फ्यूचर्स प्राइस) 19,550 है।
  • NIFTY फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट साइज 50 यूनिट्स है (यानी 1 पॉइंट = 50 रुपये)।
  • कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू = 19,550 * 50 = 9,77,500 रुपये।
  • मान लीजिए एक्सचेंज इंट्राडे मार्जिन 12% मांगता है, तो आपको अपने ब्रोकर के पास कम से कम 9,77,500 का 12% = 1,17,300 रुपये मार्जिन के रूप में ब्लॉक कराने होंगे।

2. स्थिति 1: बाजार बढ़ता है (आपका अनुमान सही):

मान लीजिए नवंबर एक्सपायरी डेट (महीने का आखिरी गुरुवार) तक NIFTY स्पॉट 20,000 पर पहुंच जाता है। फ्यूचर्स कीमत भी लगभग इसके आसपास (20,000) होगी।

  • आप अपना लॉन्ग कॉन्ट्रैक्ट 20,000 पर बेचकर बाहर आते हैं।
  • आपका मुनाफा = (बिक्री मूल्य - खरीद मूल्य) * कॉन्ट्रैक्ट साइज = (20,000 - 19,550) * 50 = 450 * 50 = 22,500 रुपये (कर और ब्रोकरेज से पहले)।
  • आपने सिर्फ ~1.17 लाख रुपये मार्जिन लगाकर 22,500 रुपये का मुनाफा कमाया। यह लीवरेज का फायदा है।

3. स्थिति 2: बाजार गिरता है (आपका अनुमान गलत):

मान लीजिए नवंबर एक्सपायरी तक NIFTY स्पॉट 18,500 पर आ जाता है। फ्यूचर्स कीमत भी 18,500 होगी।

  • आप नुकसान कम करने के लिए अपना लॉन्ग कॉन्ट्रैक्ट 18,500 पर बेचकर बाहर आते हैं।
  • आपका नुकसान = (18,500 - 19,550) * 50 = (-1,050) * 50 = -52,500 रुपये (कर और ब्रोकरेज से पहले)।
  • ध्यान दें: आपका नुकसान (52,500) आपके द्वारा लगाई गई मार्जिन (1,17,300) से भी कम है, लेकिन यह बहुत बड़ा नुकसान है। अगर बाजार और तेजी से गिरता, तो मार्जिन कॉल का खतरा हो सकता था।


फ्यूचर्स ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान

Advantages and Disadvantages of Futures Trading: फ्यूचर्स ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान आसान शब्दों में निचे दिया गया है:

फ्यूचर्स ट्रेडिंग के फायदे - Advantages of Futures Trading

  1. उच्च लाभ उठाव (High Leverage): छोटी पूंजी से बड़े पोजीशन ले सकते हैं, मुनाफे की संभावना बढ़ती है।
  2. हेजिंग (जोखिम प्रबंधन): शेयर पोर्टफोलियो या कमोडिटी एक्सपोजर के खिलाफ सुरक्षा (बीमा) का काम करता है।
  3. मार्केट डाउन होने पर भी कमाई की संभावना: शॉर्ट सेलिंग से गिरते बाजार में भी मुनाफा कमा सकते हैं।
  4. तरलता (Liquidity): प्रमुख इंडेक्स और स्टॉक फ्यूचर्स में बहुत अच्छी तरलता होती है, आसानी से खरीदा-बेचा जा सकता है।
  5. कम लेनदेन लागत (Lower Transaction Costs): शेयरों की डिलीवरी ट्रेडिंग के मुकाबले ब्रोकरेज और स्टांप ड्यूटी आमतौर पर कम होती है।
  6. मूल्य खोज (Price Discovery): भविष्य की कीमतों के बारे में बाजार की सामूहिक भावना को दर्शाता है।

फ्यूचर्स ट्रेडिंग के नुकसान - Disadvantages of Futures Trading

  1. उच्च जोखिम (High Risk): लीवरेज दोनों तरफ काम करता है। नुकसान भी छोटी पूंजी के अनुपात में बहुत बड़ा हो सकता है।
  2. मार्जिन कॉल (Margin Call): मार्केट के खिलाफ जाने पर अतिरिक्त फंड जमा करने का दबाव, नहीं करने पर जबरन बंदी।
  3. जटिलता (Complexity): कॉन्ट्रैक्ट स्पेसिफिकेशन्स, मार्जिन गणना, MTM को समझना नए निवेशकों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
  4. समय सीमा (Time Decay): एक्सपायरी डेट निश्चित होती है। अगर मार्केट आपके अनुमानित दिशा में समय पर नहीं चला तो नुकसान।
  5. भावनात्मक दबाव (Emotional Pressure): तेजी से होने वाले मूल्य परिवर्तन और लीवरेज के कारण भावनात्मक निर्णय लेने का खतरा।
  6. काउंटरपार्टी जोखिम (Counterparty Risk): एक्सचेंज (सेटलमेंट गारंटर) के विफल होने का बहुत कम जोखिम (भारत में CCIL/ICC गारंटी देते हैं)।


फ्यूचर्स और ऑप्शंस में अंतर

Difference between Options and Futures in Hindi: शेयर बाजार में निवेश या ट्रेडिंग करते समय फ्यूचर्स और ऑप्शंस दोनों ही पॉपुलर डेरिवेटिव इंस्ट्रूमेंट्स हैं। हालांकि दोनों में कुछ समानताएं हैं, परंतु इनके बीच कई अहम अंतर भी होते हैं। जो निचे हमने दिए है:

1. परिभाषा:

  • Futures: यह एक कानूनी अनुबंध होता है जिसमें खरीदार और विक्रेता एक तय तारीख पर एक निश्चित कीमत पर एसेट खरीदने या बेचने के लिए बाध्य होते हैं।
  • Options: इसमें खरीदार को अधिकार होता है (लेकिन बाध्यता नहीं) कि वह एसेट को एक तय तारीख तक एक निश्चित कीमत पर खरीदे या बेचे।

2. अधिकार बनाम दायित्व:

  • Futures: दायित्व (Obligation): खरीददार को खरीदना ही है, विक्रेता को बेचना ही है।
  • Options: अधिकार (Right), दायित्व नहीं: खरीददार (ऑप्शन होल्डर) को खरीदने/बेचने का अधिकार है, दायित्व नहीं।

3. प्रीमियम:

  • Futures: इसमें कोई प्रीमियम नहीं देना होता। सिर्फ मार्जिन जमा करनी होती है।
  • Options: खरीदार को प्रीमियम देना पड़ता है।

3. जोखिम:

  • Futures: इसमें दोनों पक्षों को अनलिमिटेड जोखिम होता है।
  • Options: जोखिम सीमित होता है, खासकर ऑप्शन खरीदार के लिए।

4. लाभ की संभावना:

  • Futures: दोनों पक्षों को असीमित लाभ की संभावना।
  • Options: खरीददार (होल्डर): असीमित लाभ की संभावना। विक्रेता (राइटर): सीमित लाभ (प्राप्त प्रीमियम तक)।

5. भुगतान:

  • Futures: निपटान के समय होता है (कैश या फिजिकल)।
  • Options: खरीददार द्वारा प्रीमियम का भुगतान ऑप्शन खरीदते समय ही कर दिया जाता है।


यह भी पढ़े:
1. Commodity Market क्या है? कमोडिटी के प्रकार
2. Swing Trading क्या है? यह ट्रेडिंग कैसे करें?
3. Day trading या Intraday trading क्या है?
4. शेयर या स्टॉक का PE Ratio क्या है और कितना होना चाहिए?


FAQs - Futures Trading in Hindi

1. क्या फ्यूचर्स ट्रेडिंग शुरू करने के लिए बहुत ज्यादा पैसा चाहिए?

जरूरी नहीं। लीवरेज की वजह से आप छोटी मार्जिन राशि से भी बड़े कॉन्ट्रैक्ट्स में ट्रेड कर सकते हैं। हालांकि, शुरुआत छोटे कॉन्ट्रैक्ट्स (जैसे NIFTY के मिनी या मिडी वर्जन, या कम लॉट साइज वाले स्टॉक फ्यूचर्स) से करनी चाहिए जिनके लिए कम पूंजी चाहिए होती है। जोखिम प्रबंधन हमेशा याद रखें।

2. क्या मैं एक्सपायरी डेट से पहले फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट बेच सकता हूँ?

हां, बिल्कुल, ज्यादातर ट्रेडर एक्सपायरी डेट से पहले ही अपनी पोजीशन को बेचकर (अगर लॉन्ग हैं) या खरीदकर (अगर शॉर्ट हैं) बंद कर देते हैं। उनका लक्ष्य डिलीवरी लेना नहीं, बल्कि कीमतों के अंतर से मुनाफा कमाना होता है।

3. फ्यूचर्स ट्रेडिंग में टैक्स कैसे लगता है?

भारत में, फ्यूचर्स ट्रेडिंग से होने वाला मुनाफा "स्पेकुलेटिव बिजनेस इनकम" माना जाता है। इसे आपकी कुल आय में जोड़ा जाता है और आपकी इनकम टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स लगता है। हालांकि, आप टर्नओवर पर STT (Securities Transaction Tax) और स्टांप ड्यूटी भी देते हैं, जो ब्रोकरेज बिल में शामिल होते हैं। कृपया अपने टैक्स एडवाइजर से सलाह लें।

4. क्या फ्यूचर्स ट्रेडिंग जुआ है?

बिल्कुल नहीं, अगर सही ज्ञान, रणनीति और जोखिम प्रबंधन के साथ की जाए। जुए में परिणाम पूरी तरह किस्मत पर निर्भर होता है। फ्यूचर्स ट्रेडिंग में बाजार विश्लेषण, समझ और अनुशासन की जरूरत होती है। हालांकि, बिना ज्ञान और अनुशासन के ट्रेडिंग निश्चित रूप से जुए जैसा जोखिम भरा हो सकता है।

5. शुरुआती निवेशकों को फ्यूचर्स ट्रेडिंग करनी चाहिए?

सामान्य सलाह यही है कि शुरुआती निवेशकों को पहले कैश मार्केट (डिलीवरी बेस्ड शेयर ट्रेडिंग) की अच्छी समझ हासिल कर लेनी चाहिए। फ्यूचर्स में जोखिम बहुत अधिक होता है। अगर शुरू करना ही है, तो छोटे साइज के इंडेक्स फ्यूचर्स (जैसे बैंकनिफ्टी या फिननिफ्टी के मिडी/मिनी कॉन्ट्रैक्ट) से शुरुआत करें, पेपर ट्रेडिंग करें, और हमेशा स्टॉप लॉस का इस्तेमाल करें।

6. फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट कहाँ ट्रेड होते हैं?

भारत में, फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स मुख्यतः नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE), बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE), मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (MCX), और नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (NCDEX) पर ट्रेड होते हैं। इक्विटी और इंडेक्स फ्यूचर्स ज्यादातर NSE पर ट्रेड होते हैं।


Conclusion:

फ्यूचर्स ट्रेडिंग भारतीय वित्तीय बाजार का एक शक्तिशाली और गतिशील हिस्सा है। यह जोखिम प्रबंधन (हेजिंग) का एक बेहतरीन टूल हो सकता है और उच्च लीवरेज के कारण मुनाफे की बड़ी संभावनाएं भी प्रदान करता है। हालांकि, यह दोधारी तलवार है। इसकी मुख्य ताकत - लीवरेज - ही इसका सबसे बड़ा जोखिम भी है, जो आपकी पूंजी को तेजी से खत्म कर सकता है। मार्जिन कॉल और मार्क टू मार्केट निपटान की व्यवस्था ट्रेडर पर निरंतर दबाव बनाए रखती है।

फ्यूचर्स ट्रेडिंग में सफलता के लिए गहन ज्ञान, एक ठोस ट्रेडिंग योजना, कठोर अनुशासन और बेहतरीन जोखिम प्रबंधन अनिवार्य है। इसे कभी भी "तेज अमीर बनने" का शॉर्टकट न समझें। शुरुआत हमेशा छोटे स्तर से करें, छोटे कॉन्ट्रैक्ट्स से प्रैक्टिस करें, और सबसे महत्वपूर्ण - कभी भी जोखिम उठाएं जिसे उठाने की आपकी क्षमता हो। पहले शिक्षा पर निवेश करें, फिर पैसे पर। सतर्क रहें, अनुशासित रहें, और व्यापार ट्रेडिंग करें।

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