ओपन इंटरेस्ट (OI) क्या है? | What is Open Interest in Stock Market in Hindi

Rashmi Alone
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क्या आपने कभी सोचा है कि शेयर बाजार सिर्फ खरीदने और बेचने से ही नहीं चलता? इसके पीछे एक और दिलचस्प कहानी चलती रहती है, खासकर फ्यूचर्स और ऑप्शंस के दुनिया में। यह कहानी है ओपन इंटरेस्ट (Open Interest - OI) की, यह एक ऐसा जादुई शब्द जो बाजार के अंदरूनी मूड और संभावित रुझानों के बारे में बहुत कुछ बता देता है। अगर आप डेरीवेटिव्स (वायदा और विकल्प) में ट्रेडिंग करते हैं या करने की सोच रहे हैं, तो OI को समझना आपके लिए महत्वपूर्ण है।

सोचिए: जब कोई नया फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट खरीदा या बेचा जाता है, तो वह बाजार में एक 'खुला सौदा' बन जाता है। ओपन इंटरेस्ट बस इन्हीं सभी 'खुले सौदों' की कुल संख्या है। यह सिर्फ एक नंबर नहीं है, बल्कि यह बताता है कि ट्रेडर्स की कितनी दिलचस्पी (इंटरेस्ट) उस विशेष कॉन्ट्रैक्ट में बनी हुई है।

आइए, इस अत्यंत उपयोगी कॉन्सेप्ट ओपन इंटरेस्ट को गहराई से समझते हैं, और जानते हैं कि यह आपकी ट्रेडिंग स्ट्रेटजी को कैसे मजबूत कर सकता है।

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ओपन इंटरेस्ट क्या है? What is Open Interest in Hindi?

ओपन इंटरेस्ट (Open Interest - OI) किसी भी समय पर किसी विशिष्ट फ्यूचर्स या ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट में खुली हुई (यानी अभी तक बंद नहीं की गई या एक्सपायर नहीं हुई) कॉन्ट्रैक्ट्स की कुल संख्या है।

ओपन इंटरेस्ट को आसान शब्दों में समझें:

खुला हुआ दायित्व: जब भी एक खरीदार (बायर) और एक विक्रेता (सेलर) एक नया कॉन्ट्रैक्ट बनाते हैं (जैसे, कोई नया फ्यूचर खरीदता है और कोई उसे बेचता है), तो एक नया ओपन इंटरेस्ट बनता है। यह दोनों पक्षों के बीच एक खुला हुआ दायित्व (ओपन ऑब्लिगेशन) दर्शाता है।

कॉन्ट्रैक्ट्स की संख्या: OI कॉन्ट्रैक्ट्स की संख्या को गिनता है, न कि उनमें हुए ट्रांजैक्शन्स (ट्रेडिंग वॉल्यूम) को। हर कॉन्ट्रैक्ट में एक खरीदार और एक विक्रेता होता है, लेकिन OI को हमेशा एक तरफ से गिना जाता है। यानी अगर किसी कॉन्ट्रैक्ट का OI 10,000 है, तो इसका मतलब है कि 10,000 लॉट्स (या कॉन्ट्रैक्ट्स) खुले हुए हैं, जिनमें 10,000 लॉन्ग पोजीशन (खरीदार) और 10,000 शॉर्ट पोजीशन (बेचने वाले) हैं।

सिर्फ नए कॉन्ट्रैक्ट्स से बदलता है: OI तभी बदलता है जब कोई नया कॉन्ट्रैक्ट बनता है या कोई मौजूदा कॉन्ट्रैक्ट बंद होता है (या तो ऑफसेटिंग ट्रेड से या एक्सपायरी पर)। अगर एक मौजूदा खरीदार, एक मौजूदा विक्रेता को अपनी पोजीशन बेच देता है, तो OI पर कोई असर नहीं पड़ता_ यह सिर्फ पोजीशन का ट्रांसफर होता है।

ओपन इंटरेस्ट को याद रखने का आसान तरीका: यह बाजार में फंसे हुए पैसे (मनी अट रिस्क) और ट्रेडर्स की उस विशेष कॉन्ट्रैक्ट में चल रही दिलचस्पी का एक मीटर है। ज्यादा OI का मतलब है ज्यादा पैसा उस कॉन्ट्रैक्ट में लगा हुआ है और ज्यादा लिक्विडिटी।


ओपन इंटरेस्ट कैसे काम करता है? How Does Open Interest Work in Hindi?

ओपन इंटरेस्ट के उतार-चढ़ाव को समझना बहुत जरूरी है। यह हमें बताता है कि नए पैसे बाजार में आ रहे हैं या निकल रहे हैं, या फिर सिर्फ मौजूदा पोजीशन्स हाथ बदल रही हैं। आइए देखें कि अलग-अलग स्थितियों में OI कैसे बदलता है:

1. नया कॉन्ट्रैक्ट बनना (नया खरीदार और नया विक्रेता):

  • मान लीजिए राहुल (खरीदार) एक नया रिलायंस इंडस्ट्रीज का फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट खरीदता है और सोहन (विक्रेता) उसे बेचता है।
  • यहाँ एक नई लॉन्ग पोजीशन (राहुल की) और एक नई शॉर्ट पोजीशन (सोहन की) बनती है।
  • परिणाम: ओपन इंटरेस्ट में वृद्धि (Increase) होती है।

2. मौजूदा कॉन्ट्रैक्ट का बंद होना (खरीदार और विक्रेता दोनों एक्सिट करते हैं):

  • मान लीजिए राहुल (मौजूदा खरीदार) अपनी लॉन्ग पोजीशन को बेचकर बाजार से बाहर निकलना चाहता है।
  • वहीं, सोहन (मौजूदा विक्रेता) अपनी शॉर्ट पोजीशन को खरीदकर बंद करना चाहता है।
  • राहुल बेचता है और सोहन खरीदता है_ वह एक-दूसरे के साथ ट्रेड करके अपनी-अपनी पोजीशन्स बंद कर देते हैं।
  • परिणाम: दो पोजीशन्स (एक लॉन्ग, एक शॉर्ट) बंद हो गईं। ओपन इंटरेस्ट में कमी (Decrease) होती है।

3. मौजूदा कॉन्ट्रैक्ट का ट्रांसफर होना (एक पुराना खरीदार नए खरीदार को बेचता है):

  • मान लीजिए राहुल (मौजूदा खरीदार) अपनी लॉन्ग पोजीशन को बेचना चाहता है।
  • अमित (एक नया खरीदार) वह पोजीशन खरीदना चाहता है।
  • राहुल बेचता है, अमित खरीदता है।
  • परिणाम: लॉन्ग पोजीशन राहुल से अमित के पास चली गई। ओपन इंटरेस्ट में कोई बदलाव नहीं, कुल खुले कॉन्ट्रैक्ट्स की संख्या वही रही, बस मालिकाना हक बदल गया। शॉर्ट पोजीशन (सोहन की) अभी भी खुली है।

4. मौजूदा कॉन्ट्रैक्ट का ट्रांसफर होना (एक नया विक्रेता मौजूदा विक्रेता से खरीदता है):

  • मान लीजिए सोहन (मौजूदा विक्रेता) अपनी शॉर्ट पोजीशन को बंद करना चाहता है (यानी खरीदना चाहता है)।
  • राज (एक नया विक्रेता) शॉर्ट जाना चाहता है (यानी बेचना चाहता है)।
  • सोहन खरीदता है (अपना शॉर्ट कवर करने के लिए), राज बेचता है (नया शॉर्ट शुरू करने के लिए)।
  • परिणाम: शॉर्ट पोजीशन सोहन से राज के पास चली गई। ओपन इंटरेस्ट में कोई बदलाव नहीं, कुल खुले कॉन्ट्रैक्ट्स की संख्या वही रही।


ओपन इंटरेस्ट का महत्व - Importance of Open Interest

ओपन इंटरेस्ट सिर्फ एक नंबर नहीं है; यह बाजार के अंदरूनी हालात के बारे में गहरी जानकारी देता है। ट्रेडर्स और इन्वेस्टर्स इसे क्यों जरूरी मानते हैं, आइए जानते हैं:

1.  बाजार में लिक्विडिटी का सूचक (Indicator of Liquidity):

  • उच्च OI = उच्च लिक्विडिटी: किसी कॉन्ट्रैक्ट का OI जितना ज्यादा होगा, उसमें उतनी ही ज्यादा लिक्विडिटी होगी। मतलब आप आसानी से अपनी पोजीशन को बिना कीमत पर ज्यादा असर डाले खरीद या बेच सकते हैं। यह ट्रेडर्स के लिए बहुत जरूरी है।
  • कम OI = कम लिक्विडिटी: कम OI वाले कॉन्ट्रैक्ट्स में खरीदने-बेचने में दिक्कत हो सकती है, स्प्रेड (खरीद-बिक्री का अंतर) ज्यादा हो सकता है, और छोटे ऑर्डर भी कीमत को तेजी से हिला सकते हैं।

2. बाजार की भावना (मार्केट सेंटीमेंट) को समझना (Gauge Market Sentiment):

  • ओपन इंटरेस्ट में बदलाव कीमत के साथ मिलकर बहुत कुछ बताते हैं। यह समझने में मदद करता है कि नया पैसा किस दिशा में जा रहा है और मौजूदा ट्रेडर्स क्या सोच रहे हैं।
  • उदाहरण: अगर किसी स्टॉक की कीमत बढ़ रही है और साथ में OI भी बढ़ रहा है, तो इसका मतलब है कि नए खरीदार बाजार में आ रहे हैं और अपनी लॉन्ग पोजीशन बना रहे हैं। यह तेजी (बुलिश) भावना को दर्शाता है।
  • उदाहरण: अगर कीमत गिर रही है और OI बढ़ रहा है, तो इसका मतलब है कि नए विक्रेता (शॉर्ट सेलर्स) बाजार में आ रहे हैं। यह मंदी (बियरिश) भावना को दर्शाता है।
  • उदाहरण: अगर कीमत बढ़ रही है लेकिन OI घट रहा है, तो इसका मतलब है कि मौजूदा शॉर्ट सेलर्स घबरा कर अपनी पोजीशन बंद कर रहे हैं (शॉर्ट कवरिंग), जिससे कीमत को अस्थायी बढ़त मिल रही है। यह एक मजबूत तेजी का संकेत नहीं हो सकता।
  • उदाहरण: अगर कीमत गिर रही है और OI भी घट रहा है, तो इसका मतलब है कि मौजूदा लॉन्ग होल्डर्स निराश होकर अपनी पोजीशन बेचकर बाहर निकल रहे हैं। यह गिरावट जारी रहने का संकेत दे सकता है।

3. समर्थन और प्रतिरोध स्तरों की पुष्टि (Confirm Support & Resistance Levels):

  • जिन स्ट्राइक प्राइस (ऑप्शंस में) या कीमत स्तरों (फ्यूचर्स में) पर OI सबसे ज्यादा जमा होता है, वे अक्सर महत्वपूर्ण सपोर्ट या रेजिस्टेंस लेवल बन जाते हैं। क्योंकि बड़े ट्रेडर्स या इंस्टीट्यूशंस अक्सर इन स्तरों पर बड़ी पोजीशन्स लेते हैं।
  • अगर कीमत उच्च OI वाले स्तर के पास पहुँचती है, तो उस स्तर पर खरीदारों या विक्रेताओं का जोर बढ़ सकता है, जिससे कीमत उछल सकती है या गिर सकती है।

4. ट्रेंड की ताकत और संभावित उलटफेर का संकेत (Signal Trend Strength & Potential Reversals):

  • जब कीमत और OI दोनों एक ही दिशा में बढ़ते हैं (चाहे ऊपर या नीचे), तो यह उस चाल (ट्रेंड) के मजबूत होने का संकेत देता है।
  • जब कीमत तेजी से बढ़ या गिर रही हो, लेकिन OI घटने लगे, तो यह चेतावनी हो सकती है कि चाल कमजोर पड़ रही है और उलटफेर (रिवर्सल) आ सकता है। क्योंकि नए पैसे की एंट्री बंद हो गई है और मौजूदा पोजीशन्स बंद हो रही हैं।

5. एक्सपायरी के पास गतिविधि (Activity Near Expiry):

  • जैसे-जैसे फ्यूचर या ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट की एक्सपायरी डेट (समाप्ति तिथि) नजदीक आती है, OI में तेजी से गिरावट आने लगती है क्योंकि ट्रेडर्स अपनी पोजीशन्स को बंद करते हैं या अगले महीने के कॉन्ट्रैक्ट में रोल ओवर करते हैं।
  • एक्सपायरी के दिन या उससे पहले OI में अचानक बड़ी गिरावट या बढ़ोतरी (खासकर ऑप्शंस में) अंतिम समय में होने वाली तेज खरीदारी या बिकवाली को दिखा सकती है।


ओपन इंटरेस्ट की गणना कैसे की जाती है? How To Calculate Open Interest in Hindi

वैसे तो आपको खुद OI कैलकुलेट करने की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि स्टॉक एक्सचेंज (NSE, BSE) और ब्रोकरेज प्लेटफॉर्म्स हर कॉन्ट्रैक्ट के लिए रियल-टाइम OI डेटा प्रदान करते हैं। फिर भी, यह समझना जरूरी है कि यह नंबर कैसे आता है।

OI कैलकुलेशन का बुनियादी सिद्धांत:

  1. शुरुआत: किसी नए कॉन्ट्रैक्ट के लिए पहले ट्रेड के दिन OI शून्य (0) होता है।
  2. नया कॉन्ट्रैक्ट बनने पर: जब भी एक नया खरीदार और एक नया विक्रेता आपस में ट्रेड करते हैं (यानी एक नया कॉन्ट्रैक्ट बनता है), तो OI में +1 जोड़ा जाता है।
  3. मौजूदा कॉन्ट्रैक्ट बंद होने पर: जब भी एक मौजूदा खरीदार और एक मौजूदा विक्रेता आपस में ट्रेड करते हैं (यानी दोनों अपनी-अपनी पोजीशन्स बंद कर देते हैं), तो OI में -1 घटाया जाता है।
  4. पोजीशन ट्रांसफर होने पर: अगर एक मौजूदा खरीदार अपनी पोजीशन किसी नए खरीदार को बेचता है, या एक मौजूदा विक्रेता अपनी पोजीशन किसी नए विक्रेता को खरीदता है (यानी ट्रांसफर होता है), तो OI में कोई बदलाव नहीं होता। कुल खुले कॉन्ट्रैक्ट्स की संख्या वही रहती है।

सूत्र के रूप में:

> कल का OI + आज के नए कॉन्ट्रैक्ट्स की संख्या - आज के बंद हुए कॉन्ट्रैक्ट्स की संख्या = आज का OI

ध्यान रखें:

  • OI हमेशा एक तरफ से गिना जाता है (या तो सभी खुले लॉन्ग या सभी खुले शॉर्ट पोजीशन्स, दोनों की संख्या बराबर होती है)।
  • यह कुल खुले हुए कॉन्ट्रैक्ट्स का योग है, न कि उनमें हुए ट्रेड्स की संख्या (वॉल्यूम)।

ओपन इंटरेस्ट का उदाहरण - Example of Open Interest

चलिए एक बहुत ही सरल उदाहरण से ओपन इंटरेस्ट को समझते हैं। मान लीजिए हमारे पास सिर्फ एक ही कॉन्ट्रैक्ट है - 'कंपनी XYZ का अगस्त फ्यूचर'।

Day 1:

  • राहुल (खरीदार) और सोहन (विक्रेता) एक नया कॉन्ट्रैक्ट बनाते हैं। (1 लॉन्ग, 1 शॉर्ट)
  • ओपन इंटरेस्ट (OI) = 1 (क्योंकि एक खुला कॉन्ट्रैक्ट है)।
  • ट्रेडिंग वॉल्यूम = 1 (एक ट्रेड हुआ)।

Day 2:

  • अमित (एक नया खरीदार) आता है और राज (एक नया विक्रेता) उसे बेचता है। एक नया कॉन्ट्रैक्ट बनता है। (1 नई लॉन्ग, 1 नई शॉर्ट)
  • ओपन इंटरेस्ट (OI) = 2 (अब दो खुले कॉन्ट्रैक्ट्स हैं: राहुल-सोहन वाला और अमित-राज वाला)।
  • ट्रेडिंग वॉल्यूम = 1 (एक ट्रेड हुआ)।

Day 3:

  • राहुल (पहला खरीदार) अपनी लॉन्ग पोजीशन को बेचना चाहता है।
  • सोहन (पहला विक्रेता) अपनी शॉर्ट पोजीशन को बंद करना चाहता है (यानी खरीदना चाहता है)।
  • राहुल और सोहन आपस में ट्रेड करते हैं: राहुल बेचता है, सोहन खरीदता है। यह उनका मूल कॉन्ट्रैक्ट बंद कर देता है।
  • ओपन इंटरेस्ट (OI) = 1 (क्योंकि सिर्फ अमित-राज वाला कॉन्ट्रैक्ट अब खुला है)।
  • ट्रेडिंग वॉल्यूम = 1 (एक ट्रेड हुआ)।

Day 4:

  • अमित (दूसरा खरीदार) अपनी लॉन्ग पोजीशन को बेचना चाहता है।
  • प्रिया (एक नया खरीदार) खरीदना चाहता है।
  • अमित बेचता है, प्रिया खरीदती है।
  • यहाँ क्या हुआ?_ अमित की लॉन्ग पोजीशन प्रिया के पास चली गई। राज की शॉर्ट पोजीशन अभी भी खुली है। कोई नया कॉन्ट्रैक्ट नहीं बना, न ही कोई बंद हुआ, सिर्फ मालिक बदला।
  • ओपन इंटरेस्ट (OI) = 1 (वही रहा - अब प्रिया (लॉन्ग) और राज (शॉर्ट) के बीच खुला कॉन्ट्रैक्ट है)।
  • ट्रेडिंग वॉल्यूम = 1 (एक ट्रेड हुआ)।

इस उदाहरण से साफ है कि OI तभी बदलता है जब नया कॉन्ट्रैक्ट बनता है या मौजूदा बंद होता है। सिर्फ पोजीशन ट्रांसफर होने से OI पर असर नहीं पड़ता।


ओपन इंटरेस्ट के फायदे - Benefits of Open Interest

ओपन इंटरेस्ट को अपनी ट्रेडिंग स्ट्रेटजी में शामिल करने के कई फायदे हैं:

  1. जोखिम प्रबंधन में सुधार (Better Risk Management): उच्च OI वाले कॉन्ट्रैक्ट्स में ट्रेड करना सुरक्षित होता है क्योंकि उनमें एग्जिट करना आसान होता है। कम OI वाले कॉन्ट्रैक्ट्स में स्लिपेज (अपने इच्छित प्राइस से अलग प्राइस पर ट्रेड होना) का जोखिम ज्यादा होता है।
  2. मार्केट की दिशा का बेहतर अनुमान (Improved Market Direction Insight): कीमत के साथ OI के बदलाव को देखकर यह समझना आसान हो जाता है कि बाजार में नया पैसा किस तरफ बह रहा है और ट्रेंड कितना मजबूत है।
  3. संभावित ट्रेंड रिवर्सल की पहचान (Identify Potential Trend Reversals): जब कीमत चरम सीमा पर हो और OI घटने लगे, तो यह एक चेतावनी संकेत हो सकता है कि ट्रेंड थकान महसूस कर रहा है और उलटफेर आ सकता है।
  4. मजबूत सपोर्ट/रेजिस्टेंस लेवल्स की पहचान (Identify Strong Support/Resistance): उच्च OI वाले स्ट्राइक प्राइस (ऑप्शंस में) या प्राइस लेवल्स (फ्यूचर्स में) अक्सर प्रमुख सपोर्ट या रेजिस्टेंस बनते हैं, जहां से कीमत उछल या गिर सकती है।
  5. इंस्टीट्यूशनल एक्टिविटी का संकेत (Signal Institutional Activity): बहुत ज्यादा OI अक्सर बड़े प्लेयर्स (जैसे FIIs, DIIs, हेज फंड्स) की भारी भागीदारी को दर्शाता है। इनका फ्लो बाजार की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाता है।
  6. वॉल्यूम विश्लेषण के साथ मिलाकर शक्तिशाली संयोजन (Powerful Combined with Volume Analysis): वॉल्यूम (कितने ट्रेड हुए) और OI (कितने कॉन्ट्रैक्ट खुले हैं) को साथ में देखना बाजार की ताकत और कमजोरी को समझने का एक बहुत ही शक्तिशाली तरीका है।


ओपन इंटरेस्ट और ट्रेडिंग वॉल्यूम के बीच अंतर

अक्सर नए ट्रेडर्स OI और वॉल्यूम को लेकर कन्फ्यूज हो जाते हैं। दोनों अलग-अलग चीजें हैं, हालाँकि दोनों ही बाजार की गतिविधि को मापते हैं।

  1. वॉल्यूम बताता है कि आज कितनी बार खरीदा-बेचा गया (चाहे वही पुराना स्टॉक हाथ बदल रहा हो या नया जुड़ रहा हो)।
  2. ओपन इंटरेस्ट बताता है कि फिलहाल कितने कॉन्ट्रैक्ट्स "खुले हुए दांव" के रूप में मौजूद हैं, जिनका अभी फैसला नहीं हुआ।


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FAQs: Open Interest in Hindi

1. क्या ओपन इंटरेस्ट सिर्फ फ्यूचर्स के लिए होता है?

नहीं, ओपन इंटरेस्ट (OI) फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स के साथ-साथ ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट्स के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। ऑप्शंस में तो अक्सर स्ट्राइक प्राइस के हिसाब से OI का विश्लेषण करके सपोर्ट/रेजिस्टेंस और मार्केट सेंटीमेंट का अंदाजा लगाया जाता है।

2. ओपन इंटरेस्ट बढ़ना हमेशा अच्छा होता है?

जरूरी नहीं, OI का बढ़ना या घटना अकेले में कोई अच्छी या बुरी बात नहीं है। इसका मतलब समझने के लिए आपको इसे कीमत की चाल के साथ जोड़कर देखना होगा:

  • कीमत बढ़े + OI बढ़े: बुलिश (तेजी), नए खरीदार आ रहे हैं। (आमतौर पर सकारात्मक)
  • कीमत गिरे + OI बढ़े: बियरिश (मंदी), नए शॉर्ट सेलर्स आ रहे हैं। (आमतौर पर नकारात्मक)
  • कीमत बढ़े + OI घटे: शॉर्ट कवरिंग या लॉन्ग एक्जिट, ट्रेंड कमजोर हो सकता है। (सावधानी)
  • कीमत गिरे + OI घट: लॉन्ग एक्जिट, गिरावट जारी रह सकती है। (नकारात्मक)

3. क्या ओपन इंटरेस्ट देखकर अकेले ट्रेडिंग डिसीजन लेना सही है?

बिल्कुल नहीं, ओपन इंटरेस्ट एक शक्तिशाली टूल है, लेकिन यह कोई क्रिस्टल बॉल नहीं है। इसे हमेशा अन्य टूल्स जैसे: प्राइस एक्शन (कीमत की चाल और पैटर्न), ट्रेडिंग वॉल्यूम, तकनीकी संकेतक (जैसे मूविंग एवरेज, RSI, MACD), मौलिक विश्लेषण (कंपनी के नतीजे, समाचार), मार्केट ट्रेंड, के साथ मिलाकर ही इस्तेमाल करना चाहिए।

4. ओपन इंटरेस्ट डेटा कहाँ देख सकते हैं?

ओपन इंटरेस्ट डेटा आसानी से उपलब्ध होता है: नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) वेबसाइट, बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) वेबसाइट, ब्रोकरेज प्लेटफॉर्म्स, फाइनेंशियल न्यूज़ वेबसाइट्स, आदि भी F&O डेटा प्रदर्शित करते हैं।

5. ऑप्शंस में किस स्ट्राइक प्राइस पर सबसे ज्यादा OI होता है?

अक्सर ATM (At-The-Money) या नजदीकी OTM (Out-of-The-Money) स्ट्राइक प्राइस पर सबसे ज्यादा OI जमा होता है। ATM स्ट्राइक वह होता है जो करंट मार्केट प्राइस के सबसे करीब होता है। इन स्तरों पर OI अक्सर मनोवैज्ञानिक सपोर्ट या रेजिस्टेंस के रूप में काम करता है। साथ ही, सबसे ज्यादा OI वाले कॉल ऑप्शन की स्ट्राइक को अक्सर एक रेजिस्टेंस लेवल और सबसे ज्यादा OI वाले पुट ऑप्शन की स्ट्राइक को सपोर्ट लेवल माना जाता है।


Conclusion:

ओपन इंटरेस्ट स्टॉक मार्केट, खासकर डेरीवेटिव्स (फ्यूचर्स और ऑप्शंस) की दुनिया में एक अनिवार्य और अत्यंत शक्तिशाली कॉन्सेप्ट है। यह सिर्फ एक नंबर नहीं है; यह बाजार के दिल की धड़कन को सुनने का एक जरिया है। यह आपको बताता है कि कहाँ पैसा लग रहा है, ट्रेडर्स किस दिशा में आशान्वित हैं, बाजार कितना तरल है, और कौन से स्तर महत्वपूर्ण हो सकते हैं।

हालाँकि, याद रखें कि ओपन इंटरेस्ट कोई जादू की छड़ी नहीं है। इसे कभी भी अकेले ट्रेडिंग डिसीजन के लिए इस्तेमाल न करें। इसकी असली ताकत तब सामने आती है जब आप इसे प्राइस एक्शन, ट्रेडिंग वॉल्यूम, तकनीकी संकेतकों और मौलिक कारकों के साथ जोड़कर विश्लेषण करते हैं। यह आपकी समझ को गहरा करता है और आपको अधिक सूचित और आत्मविश्वासपूर्ण ट्रेडिंग निर्णय लेने में मदद करता है।

अगली बार जब आप फ्यूचर्स या ऑप्शंस चार्ट देखें, तो सिर्फ कीमत पर नज़र न डालें। ओपन इंटरेस्ट के उतार-चढ़ाव पर भी गौर करें। यह छोटा सा नंबर आपको बाजार की अंदरूनी कहानी समझने में मदद करेगा, जो आपको भीड़ से आगे रख सकता है। समय और अभ्यास के साथ, ओपन इंटरेस्ट को पढ़ना आपकी दूसरी प्रकृति बन जाएगी, और आपकी ट्रेडिंग यात्रा को ज्यादा सफल बना सकेगा।


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