आपने अक्सर निवेश के बारे में पढ़ते या सुनते समय "बॉन्ड्स" (Bonds) शब्द ज़रूर सुना होगा। शेयर बाजार, म्यूचुअल फंड, या FD के साथ-साथ बॉन्ड्स भी निवेश का एक लोकप्रिय विकल्प हैं। तो दोस्तों इस पोस्ट में हम बॉन्ड क्या है? बॉन्ड के प्रकार, बॉन्ड कैसे खरीदें? शेयर और बॉन्ड में क्या अंतर है? What is bonds in finance, Types of bonds in hindi, फायदे, नुकसान, और भारत में बॉन्ड्स में निवेश करने के तरीकों तक सब कुछ जानेंगे।
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बॉन्ड क्या होते हैं? - What Is Bonds In Finance?
बॉन्ड्स को "ऋण प्रतिभूति (Debt Securities)" या "डिबेंचर (Debentures)" भी कहा जाता है। यह एक प्रकार का लोन होता है जो निवेशक किसी सरकार, कंपनी, या संस्था को देते हैं। बदले में, उधार लेने वाला पक्ष (जैसे सरकार या कंपनी) निवेशक को निश्चित ब्याज दर और समय अवधि के बाद मूलधन लौटाने का वादा करता है।
बॉन्ड्स को "Fixed Income Securities" भी कहा जाता है, क्योंकि इनसे मिलने वाला रिटर्न पहले से तय होता है। यह शेयर बाजार की तुलना में कम जोखिम वाला निवेश माना जाता है।
बॉन्ड्स जारी कौन करता है? - Who Issues Bonds?
बॉन्ड्स जारी करने वाले मुख्य तीन पक्ष होते हैं:
1. सरकार (Government Bonds):
- केंद्र सरकार (जैसे भारत सरकार) या राज्य सरकारें।
- इन्हें सबसे सुरक्षित माना जाता है, क्योंकि सरकार दिवालिया होने की संभावना न के बराबर होती है।
- उदाहरण: भारत सरकार के सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड या 7.75% बचत बॉन्ड।
2. कॉर्पोरेट कंपनियां (Corporate Bonds):
- टाटा, रिलायंस, इंफोसिस जैसी बड़ी कंपनियां।
- यह बॉन्ड्स सरकारी बॉन्ड्स की तुलना में ज़्यादा ब्याज देते हैं, लेकिन जोखिम भी थोड़ा अधिक होता है।
3. म्युनिसिपल निकाय (Municipal Bonds):
- नगर निगम या स्थानीय प्रशासन द्वारा जारी किए जाते हैं।
- इनका उद्देश्य सार्वजनिक परियोजनाओं (जैसे सड़क, हॉस्पिटल) के लिए फंड जुटाना होता है।
बॉन्ड्स कैसे काम करते हैं? - How Do Bonds Work?
बॉन्ड्स की कार्यप्रणाली को समझने के लिए निम्नलिखित टर्म्स जानना ज़रूरी है:
- Face Value: बॉन्ड का मूल मूल्य (जैसे ₹1,000)।
- Coupon Rate: वार्षिक ब्याज दर (जैसे 6% प्रति वर्ष)।
- Maturity Period: बॉन्ड की अवधि (जैसे 5 साल)।
- Issue Price: बॉन्ड की शुरुआती कीमत (कभी-कभी फेस वैल्यू से कम या ज़्यादा हो सकती है)।
उदाहरण:
मान लीजिए आपने ₹10,000 के सरकारी बॉन्ड खरीदे, जिसकी ब्याज दर 7% है और मैच्योरिटी 5 साल।
:- हर साल आपको ₹700 ब्याज मिलेगा। और 5 साल बाद आपको ₹10,000 वापस मिल जाएंगे।
- बॉन्ड्स को सेकेंडरी मार्केट में भी खरीदा-बेचा जा सकता है। इसकी कीमत बाजार की स्थितियों (ब्याज दरों, मांग-आपूर्ति) के अनुसार घट-बढ़ सकती है।
बॉन्ड्स के प्रकार - Types of Bonds In Hindi
भारत में निवेशकों के लिए उपलब्ध बॉन्ड्स के कुछ मुख्य प्रकार हैं, जो हमने निचे दिए है:
1. कॉर्पोरेट बॉन्ड
कंपनियाँ अपने व्यवसायिक खर्चों के लिए पूंजी जुटाने हेतु इन बॉन्ड्स को जारी करती हैं। क्योकि इनकी सुरक्षा कंपनी की क्रेडिटवर्थनेस पर निर्भर करती है, यह ट्रेजरी बॉन्ड की तुलना में अधिक जोखिम भरे होते हैं। इनकी ब्याज दर और परिपक्वता अवधि जारीकर्ता कंपनी की वित्तीय स्थिति और बाजार के हालात पर निर्भर करती है।
2. ट्रेजरी बॉन्ड (सरकारी बॉन्ड)
इन बॉन्ड्स को केंद्र सरकार द्वारा जारी किया जाता है। क्योकि इनमें क्रेडिट जोखिम (डिफ़ॉल्ट का खतरा) नहीं होता, यह सबसे सुरक्षित बॉन्ड माने जाते हैं। इनकी परिपक्वता अवधि 10 से 30 वर्ष तक होती है और इन पर प्रचलित बाजार दरों के आधार पर एक निश्चित ब्याज दर मिलती है।
3. म्युनिसिपल बॉन्ड (नगरपालिका बॉन्ड)
स्थानीय या राज्य सरकारें स्कूल, हाइवे, अस्पताल जैसे विकास परियोजनाओं के लिए धन जुटाने हेतु इन बॉन्ड्स को जारी करती हैं। इन पर आमतौर पर टैक्स छूट होती है और यह कम (कुछ महीने) या लंबी (कई साल) अवधि के लिए उपलब्ध होते हैं।
4. हाई-यील्ड बॉन्ड (जंक बॉन्ड)
कम क्रेडिट रेटिंग वाली कंपनियों द्वारा जारी किए जाने वाले ये बॉन्ड अधिक जोखिम भरे होते हैं, लेकिन जोखिम के बदले इन पर ब्याज दर भी अधिक मिलती है। इन्हें "जंक बॉन्ड" भी कहा जाता है।
5. मॉर्टगेज-बैक्ड सिक्योरिटीज (MBS)
रियल एस्टेट कंपनियाँ कई होम लोन (गृह ऋण) को एक साथ जोड़कर इन सिक्योरिटीज को जारी करती हैं। इनकी सुरक्षा उन लोन से मिलने वाले कैश फ्लो पर आधारित होती है, इसलिए ये कॉर्पोरेट बॉन्ड से कम जोखिम वाले माने जाते हैं।
6. फ्लोटिंग रेट बॉन्ड
इन बॉन्ड्स की ब्याज दर समय-समय पर बाजार दरों (जैसे RBI की रेपो दर) के साथ बदलती रहती है। यह निवेशकों को ब्याज दर के उतार-चढ़ाव से बचाता है, लेकिन इन पर रिटर्न मैक्रोइकॉनॉमिक कारकों पर निर्भर करता है।
7. कॉलेबल बॉन्ड
जारीकर्ता कंपनी इन बॉन्ड्स को परिपक्वता से पहले भी ख़रीद सकती है (आमतौर पर प्रीमियम कीमत पर)। इससे कंपनी को लोन प्रबंधन में लचीलापन मिलता है, लेकिन निवेशकों को पुनर्निवेश का जोखिम रहता है।
8. कन्वर्टिबल बॉन्ड
इन्हें निवेशक एक पूर्वनिर्धारित अनुपात पर कंपनी के शेयर्स में बदल सकते हैं। इससे निवेशकों को ब्याज के साथ-साथ शेयर बाजार में होने वाले फ़ायदे का मौका मिलता है।
9. इन्फ्लेशन-लिंक्ड बॉन्ड्स
सरकार द्वारा जारी किए जाने वाले यह बॉन्ड मुद्रास्फीति (Inflation) के प्रभाव को कम करते हैं। इनकी ब्याज दर समय-समय पर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के आधार पर समायोजित की जाती है, जिससे निवेशकों की खरीदने की क्षमता सुरक्षित रहती है।
10. जीरो-कूपन बॉन्ड
यह बॉन्ड अंकित मूल्य से कम कीमत पर जारी किए जाते हैं और इन पर कोई नियमित ब्याज नहीं मिलता। परिपक्वता पर निवेशकों को अंकित मूल्य और जारी मूल्य के बीच का अंतर मिलता है। ये उन निवेशकों के लिए आदर्श हैं जो एक निश्चित अवधि में गारंटीड रिटर्न चाहते हैं।
बॉन्ड्स की विशेषताएं (Features Of Bonds)
- फिक्स्ड इनकम: ब्याज की राशि और भुगतान का समय पहले से तय होता है।
- सुरक्षा: विशेषकर सरकारी बॉन्ड्स में पूंजी का जोखिम कम होता है।
- लिक्विडिटी: सेकेंडरी मार्केट में बेचकर पैसा निकाला जा सकता है।
- टैक्स बेनिफिट्स: कुछ बॉन्ड्स (जैसे सरकारी) पर टैक्स छूट मिलती है।
- मैच्योरिटी तिथि: निवेश की अवधि स्पष्ट होती है।
बॉन्ड्स के फायदे (Advantages Of Bonds)
- स्थिर रिटर्न: ब्याज की गारंटी, जो FD से अधिक हो सकती है।
- जोखिम कम: शेयर बाजार की तुलना में उतार-चढ़ाव कम।
- पोर्टफोलियो डाइवर्सिफिकेशन: निवेश को अलग-अलग जगह बांटने का अवसर।
- टैक्स सेविंग: सेक्शन 80C के तहत कुछ बॉन्ड्स पर छूट।
- नियमित इनकम: पेंशनर्स या नियमित आय चाहने वालों के लिए आदर्श।
बॉन्ड्स के नुकसान (Limitations Of Bonds)
- इंटरेस्ट रेट रिस्क: ब्याज दरें बढ़ने पर बॉन्ड की मार्केट वैल्यू घट सकती है।
- इन्फ्लेशन रिस्क: महंगाई दर अधिक होने पर रिटर्न की वास्तविक वैल्यू कम हो जाती है।
- क्रेडिट रिस्क: कॉर्पोरेट बॉन्ड जारीकर्ता के दिवालिया होने की स्थिति में नुकसान।
- लॉक-इन पीरियड: कुछ बॉन्ड्स में समय से पहले पैसा नहीं निकाल सकते।
बॉन्ड्स में निवेश कैसे करें? - How To Invest In Bonds in India?
भारत में बॉन्ड्स में निवेश के मुख्य तरीके हैं:
1. प्राइमरी मार्केट से खरीदें
- सरकारी बॉन्ड: RBI Retail Direct प्लेटफॉर्म के माध्यम से।
- कॉर्पोरेट बॉन्ड: कंपनी द्वारा IPO की तरह जारी किए जाते हैं।
2. सेकेंडरी मार्केट से खरीदें
- स्टॉक एक्सचेंज (NSE, BSE) के माध्यम से बॉन्ड्स खरीदें-बेचें।
3. बॉन्ड म्यूचुअल फंड
- डेट फंड या कॉर्पोरेट बॉन्ड फंड में SIP के जरिए निवेश।
4. ETF के माध्यम से
- गवर्नमेंट सेक्योरिटीज ETF जैसे BHARAT BOND ETF.
5. बैंक या ब्रोकर के जरिए
- बैंकों या रजिस्टर्ड ब्रोकर्स की मदद से बॉन्ड खरीदें।
बॉन्ड्स में निवेश से पहले ध्यान रखने योग्य बातें:
Things To Consider Before Investing In Bonds_
- क्रेडिट रेटिंग: CRISIL, ICRA जैसी एजेंसियों से बॉन्ड की रेटिंग चेक करें।
- ब्याज दरों का रुझान: बढ़ती दरों में लंबी अवधि के बॉन्ड्स से बचें।
- निवेश अवधि: अपनी फाइनेंशियल ज़रूरतों के अनुसार मैच्योरिटी चुनें।
- टैक्स इम्प्लीकेशन्स: ब्याज पर टैक्स और कैपिटल गेन टैक्स का ध्यान रखें।
- लिक्विडिटी: क्या बॉन्ड को जल्दी बेचा जा सकता है?
शेयर और बॉन्ड में क्या अंतर है?
Difference Between Shares and Bonds: अगर आप निवेश की दुनिया में नए हैं, तो शेयर और बॉन्ड के बीच का अंतर समझना बेहद महत्वपूर्ण है। ये दोनों ही वित्तीय साधन हैं, लेकिन इनकी प्रकृति, जोखिम और रिटर्न में बड़ा फर्क होता है। नीचे समझिए इनके मुख्य पॉइंट्स:
- स्वामित्व बनाम ऋण (Ownership vs Debt): शेयर किसी कंपनी में हिस्सेदारी (Ownership) दर्शाते हैं, यानी शेयरधारक कंपनी के आंशिक मालिक होते हैं। वहीं, बॉन्ड एक तरह का ऋण साधन (Debt Instrument) है, जहां निवेशक कंपनी या सरकार को लोन देते हैं।
- रिटर्न का प्रकार: शेयर से मुनाफा डिविडेंड या शेयर की कीमत बढ़ने (Capital Gain) से मिलता है। बॉन्ड में निश्चित ब्याज (Fixed Interest) मिलता है, जिसे कूपन रेट कहते हैं।
- जोखिम का स्तर: शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव के साथ जुड़े होते हैं, इसलिए जोखिम अधिक होता है। बॉन्ड में जोखिम कम होता है, खासकर सरकारी बॉन्ड (Government Bonds) को सुरक्षित माना जाता है।
- लिक्विडिटी (तरलता): शेयर आमतौर पर स्टॉक मार्केट में आसानी से खरीदे-बेचे जा सकते हैं, जबकि बॉन्ड की लिक्विडिटी उनके प्रकार और टर्म पर निर्भर करती है।
- कंपनी के दिवालिया होने की स्थिति: अगर कंपनी बंद होती है, तो बॉन्डधारकों को पहले भुगतान मिलता है। शेयरधारकों को अंत में भुगतान होता है, जो अक्सर ना के बराबर होता है।
- टैक्स प्रभाव: बॉन्ड से मिलने वाला ब्याज टैक्सेबल होता है, जबकि शेयर पर लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन (1 लाख से अधिक) पर 10% टैक्स लगता है।
- निवेश का उद्देश्य: शेयर लॉन्ग-टर्म ग्रोथ के लिए उपयुक्त हैं, जबकि बॉन्ड स्टेबल इनकम और सुरक्षा चाहने वालों के लिए बेहतर विकल्प हैं।
यह भी पढ़े:
1. Debentures क्या है, प्रकार, डिबेंचर कैसे खरीदें?
2. What Is ETF - Types Of ETF In Hindi
3. स्टॉक मार्किट में IPO क्या है?
4. Repo Rate और Reverse Repo Rate क्या है?
FAQs: बॉन्ड्स से जुड़े सवाल-जवाब
1. बॉन्ड्स में निवेश की न्यूनतम राशि कितनी है?
सरकारी बॉन्ड्स (जैसे RBI Retail Direct) में ₹10,000 से शुरुआत कर सकते हैं।
2. क्या बॉन्ड्स सुरक्षित निवेश हैं?
हां, खासकर सरकारी बॉन्ड्स। लेकिन कॉर्पोरेट बॉन्ड्स में क्रेडिट रिस्क होता है।
3. क्या बॉन्ड्स पर टैक्स लगता है?
हां, ब्याज आय को आपकी सालाना इनकम में जोड़ा जाता है। हालांकि, टैक्स-सेविंग बॉन्ड्स (जैसे 54EC) पर छूट मिलती है।
4. क्या बॉन्ड्स को समय से पहले बेच सकते हैं?
हां, सेकेंडरी मार्केट में, लेकिन कीमत घाटे में भी जा सकती है।
5. बॉन्ड्स की ब्याज दर कैसे तय होती है?
यह जारीकर्ता की क्रेडिट रेटिंग, बाजार की ब्याज दरों, और मैच्योरिटी अवधि पर निर्भर करती है।
निष्कर्ष:
बॉन्ड्स निवेश का एक सुरक्षित और नियमित आय वाला विकल्प है, खासकर उन लोगों के लिए जो शेयर बाजार के जोखिम से बचना चाहते हैं। हालांकि, हर निवेश की तरह इसमें भी कुछ जोखिम होते हैं, इसलिए बॉन्ड्स चुनने से पहले उनकी रेटिंग, ब्याज दरों के रुझान, और अपनी वित्तीय ज़रूरतों को अच्छी तरह समझ लें। भारत में बॉन्ड मार्केट तेजी से बढ़ रहा है, और RBI Retail Direct जैसे प्लेटफॉर्म्स ने इसे छोटे निवेशकों के लिए भी सुलभ बना दिया है।
Disclaimer: Investments in the securities market are subject to market risk, read all related documents carefully before investing. This content is for educational purposes only. Securities quoted are exemplary and not recommendatory.